शुक्रवार, 20 जून 2008

पूर्णिमा वर्मन की बाल कविताएँ और उनका बाल-कथा संसार- कृष्ण शलभ

पूर्णिमा वर्मन की बाल कविताएँ बच्चों की दुनिया के बीच से ही उठाई गई हैं और इन कविताओं की बहिरंग और अंतरंग छवियों में बचपन के सारे रंग मौजूद हैं। हालाँकि इन कविताओं के वर्ण्य विषय पूर्व प्रचलित विषयों की तरह पारंपरिक- त्योहार के साथ साथ तारा चिड़िया और पशु पक्षी पर केंद्रित हैं जो आपने पुराने सांचे से बाहर निकलने की कोशिश करते दिखाई नहीं देते। कविता के रस प्रसंग इसके बावजूद बच्चे के कौतुक और विचार प्रवाह के बीच अपनी चौहद्दी तोड़ते दिखाई देते हैं। ऐसे रस प्रसंगों में कवयित्री जीवंत और खिलंदड़ा बच्चा ढूँढ लाने और उसके साथ बातियाने में वे सफल रही हैं।

छोटी-छोटी ये कहानियाँ रस प्रसंगों के बीच से उठाकर बुनी गयी हैं जिनके ताने-बाने में रस का मीठा प्रपात बहता दिखाई देता है। लाल गुब्बारा कहानी में नैना और गुब्बारे के बीच खेल-खेल में एक अंगूठा रिश्ता जन्मता है मैत्रीभाव का यह रिश्ता बच्चे ही कायम कर सकते हैं और सचमुच यह रिश्ता इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि बच्चे ही हैं जो किसी भी वस्तु से व्यक्ति से, इतनी निकटता स्थापित कर पाने में सक्षम होते हैं उनके व्यवहार की रागात्मकता अन्यत्र दुर्लभ है। इसी रागात्मकता ने गुब्बारे को लालू बना दिया है। लालू का छूटना नैना को आहत करता है। कैसा भोला तरल मुमत्व जो बड़ों की दुनिया में बहुत खोजने पर भी संभव नहीं है।

इन कविताओं की विशेषता यही है कि इनके बीच से गुजरते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे एक बच्चे के हाथ ले कलम है और वह अपने विचार प्रवाह के ठाठ के साथ यह सब लिखे दे रहा हैजो उसमें तरंगित हैजैसे बचपन के हाथों बने मिट्टी के अनगढ़ खिलौने जिनके बीच से बच्चा और उसका अप्रतिम भोला सौंदर्य झाँकता दिखाई देता है।

पूर्णिमा वर्मन की एक बाल कविता है तारा टूटा। इस कविता में तारे के टूटने और लूटने और उसे ढूँढने के अनुपम चित्र हैं। बच्चे की कैसी मासूम-सी भोली लालसा है कि टूटा हुआ तारा मिल जाता तो उसे अलमारी मैं सजाता। कारण… कारण बस इतना भर कि उसे हर दिन चमचम करते देखने की चाह है। उसकी यह कल्पना अपने आप में सहज स्फूर्त और अनूठी है पारंपरिक जड़ता को तोड़ती नव्यता का दृष्टिबोध है यह कविता अपनी चुस्त दुरुस्त चहलकदमी के साथ आकार ग्रहण करती हैं

पूर्णिमा वर्मन की एक और रचना है चिंटू मेरा दोस्त। इस रचना में कवयित्री की बाल दृष्टि अपने आसपास को पढ़ती है उससे एक दोस्ताना रिश्ता कायम करती है और यहाँ वहाँ सजग दृष्टि के साथ सारे माहौल और चीजों को झाँकती है। चिंटू उसका दोस्त है वह सुबह जल्दी ही उठ जाता है झटपट स्कूल जाता है जहाँ से उसे जो ईनाम मिलते हैं वह लाकर उसे दिखाता है। हाँ उसे अंडा मक्खन टोस्ट खाना पसंद है। 

टोपी की दुनिया, रंग रंगीली चीजें, फूल और तितली बाल कविताओं की कुछ अलग अलग छवियाँ हैं जिनके बीच से उभरती, आकर लेती कविता बच्चों में सरल मोहक छवि के साथ कुछ नये अर्थ देने का प्रयास करती दिखाई देती है। तितली नामक कविता इस अर्थ में ऐसी कविता है जहाँ सीधे-साधे तथ्यों से बात करते हुए अंततः एक ऐसे अनूठे बिंदु पर समाप्त होती हैं, जहाँ लगता है कि ऐसे भी सोचा जा सकता है। यह काँटा लगने पर पीड़ा के कराण पहाड़ा भूल जाने की स्थिति बेजोड़ है जिस पर मुग्ध हुआ जा सकता है।
खेल खेल में चुभा बबूल
तितली गई पहाड़ा भूल

...

एक था राजा
एक थी रानी,
दोनों मर गए
खत्म कहानी,
जाने कब से ये चार पंक्तियाँ चतुर्दिक कहानी के इति अर्थ को बताते चली आ रही है पर सचमुच में क्या कभी कहानी खत्म हुई सुनने वाले, बोलने वाले, कहने वाले, लिखने और पढ़ने वाले एक से एक छोटे अजब-गजब से रिश्ते के साथ अपने अपने अपने काम पर मुस्तैदी के साथ दिखाई देते हैं और दिखाई देंगे।

पूर्णिमा वर्मन के तन्मय रचनाकार को एकरंगी होना स्वीकार्य नहीं है अतः उनके कथा संसार में भी अनेक कहानियाँ हैं। लाल गुब्बारा, सैर, चालाकी का फल, दशहरे का मेला, और गर्म जामुन कुछ ऐसी ही कहानियाँ हैं जिनके बीच से गुजरना बच्चों को अच्छा लगेगा।

पूर्णिमा वर्मन के रचना संसार में ठहराव नहीं है। उसमें विचार से रूपाकार का वैविध्य है। यह वैविध्य ही रचनाकार का सर्जन बोध है जिसका नैरंतर्य ही कुछ करने की सामर्थ्य का संकेत देता है।